भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है, जहाँ हर राज्य की अपनी विशिष्ट भाषा, संस्कृति और इतिहास है। इसी श्रृंखला में महाराष्ट्र का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। हर वर्ष 1 मई को पूरे महाराष्ट्र राज्य में “महाराष्ट्र दिवस” मनाया जाता है। यह दिन उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाता है जब वर्षों के संघर्ष और आंदोलन के बाद महाराष्ट्र एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित हुआ था।

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महाराष्ट्र दिवस
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद जब राज्यों का पुनर्गठन शुरू हुआ, तब भाषाई आधार पर राज्यों के निर्माण की मांग ने जोर पकड़ा। विशेष रूप से, मराठी भाषी लोगों ने अपने लिए एक अलग राज्य की माँग की। उस समय “बॉम्बे राज्य” नाम से एक बड़ा राज्य अस्तित्व में था, जिसमें आज के महाराष्ट्र और गुजरात दोनों शामिल थे। इस राज्य में दो प्रमुख भाषाएँ बोली जाती थीं — मराठी और गुजराती। लेकिन समय के साथ यह स्पष्ट होने लगा कि भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के चलते अलग-अलग राज्यों की आवश्यकता है।
मराठी भाषी जनता ने अपने अलग राज्य की मांग को लेकर एक बड़े आंदोलन की शुरुआत की, जिसे इतिहास में “संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन” के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन में लाखों लोगों ने भाग लिया और कई जानें भी गईं। आंदोलन के दबाव और जनता की भावनाओं को देखते हुए, भारत सरकार ने नया कानून बनाया। “बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम 1960” के तहत, 1 मई 1960 को बॉम्बे राज्य को दो हिस्सों में बाँट दिया गया — महाराष्ट्र और गुजरात।
1 मई का दिन केवल एक नई भौगोलिक रेखा खींचने का दिन नहीं था, बल्कि यह मराठी अस्मिता, संस्कृति और भाषा की विजय का प्रतीक बन गया। इसी दिन को आज हम महाराष्ट्र दिवस के रूप में मनाते हैं, जो राज्य की एकता, संघर्ष, और गौरव की याद दिलाता है। इस दिन को पूरे महाराष्ट्र में झंडावंदन, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, और विविध आयोजनों के साथ बड़े गर्व और उत्साह से मनाया जाता है।
महाराष्ट्र दिवस का इतिहास
भारत को आज़ादी मिलने के बाद देश में कई राज्यों का गठन किया गया था, लेकिन उस समय राज्यों का विभाजन भाषा के आधार पर नहीं किया गया था। धीरे-धीरे विभिन्न भाषाई समुदायों ने अपनी भाषा और संस्कृति के अनुरूप अलग राज्य बनाने की मांग उठानी शुरू की। इसी संदर्भ में मराठी भाषी लोगों ने भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने के लिए एक पृथक राज्य की मांग की।
उस समय बॉम्बे राज्य अस्तित्व में था, जिसमें वर्तमान महाराष्ट्र, गुजरात और कुछ अन्य क्षेत्र शामिल थे। इस राज्य में मुख्यतः दो भाषाएँ बोली जाती थीं — मराठी और गुजराती। दोनों भाषाई समूहों की अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान थी, और इसी भिन्नता के कारण क्षेत्रीय असंतोष बढ़ने लगा। मराठी भाषी नागरिक चाहते थे कि उन्हें एक ऐसा राज्य मिले जहाँ उनकी भाषा, संस्कृति और परंपराएँ संरक्षित और सम्मानित हो सकें।
इस मांग ने धीरे-धीरे एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया, जिसे इतिहास में “संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन” के नाम से जाना जाता है। यह आंदोलन 1950 के दशक में शुरू हुआ और मराठी भाषी जनता, राजनीतिक नेताओं, छात्रों और आम नागरिकों ने मिलकर इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। आंदोलन के दौरान “मराठी राज्य हमारा हक है” जैसे नारे गूंजते रहे और मुंबई को महाराष्ट्र में शामिल करने की मांग ने आंदोलन को और भी उग्र बना दिया।
1956 में भारत सरकार ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया, जिसने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की सिफारिश की। हालांकि, प्रारंभ में बॉम्बे राज्य को एक द्विभाषी राज्य के रूप में बनाए रखने का निर्णय लिया गया था, जिससे मराठी जनता में असंतोष और बढ़ गया। इसके विरोध में बड़े पैमाने पर रैलियाँ, हड़तालें और प्रदर्शन आयोजित किए गए।
इस आंदोलन के दौरान कई स्थानों पर हिंसा भी हुई और सरकारी कार्रवाई में कई आंदोलनकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। अनुमान के अनुसार संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में लगभग 106 लोग शहीद हुए। इन बलिदानों ने आंदोलन को और अधिक बल प्रदान किया और सरकार पर दबाव बढ़ता गया।
आखिरकार, जनता के तीव्र विरोध और राजनीतिक हालात को देखते हुए भारत सरकार ने “बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम, 1960” पारित किया। इस अधिनियम के अनुसार, बॉम्बे राज्य को भाषाई आधार पर दो नए राज्यों में विभाजित किया गया —
- महाराष्ट्र (मराठी भाषी जनता के लिए)
- गुजरात (गुजराती भाषी जनता के लिए)
यह विभाजन 1 मई 1960 से प्रभावी हुआ। मुंबई, जो आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर था, उसे महाराष्ट्र राज्य की राजधानी बनाया गया।
इस ऐतिहासिक घटना की याद में हर साल 1 मई को महाराष्ट्र दिवस मनाया जाता है। यह दिन महाराष्ट्र की सांस्कृतिक अस्मिता, भाषा गौरव और संघर्षशीलता का प्रतीक बन गया है।
1 मई 1960 को क्या हुआ था?
1 मई 1960 का दिन महाराष्ट्र के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और यादगार दिन बन गया। इस दिन बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम, 1960 (Bombay Reorganisation Act, 1960) लागू हुआ, जिसके तहत तत्कालीन बॉम्बे राज्य को दो नए राज्यों में विभाजित किया गया — महाराष्ट्र और गुजरात। इस विभाजन का मुख्य आधार भाषा थी, जिसमें मराठी भाषी जनता के लिए महाराष्ट्र और गुजराती भाषी जनता के लिए गुजरात राज्य का गठन किया गया।
1 मई 1960 को महाराष्ट्र ने एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अपनी पहचान प्राप्त की। इस दिन आधिकारिक रूप से महाराष्ट्र राज्य का उद्घाटन किया गया। मुंबई, जो उस समय भी एक प्रमुख आर्थिक केंद्र थी, उसे महाराष्ट्र राज्य की राजधानी घोषित किया गया। मुंबई को लेकर काफी समय तक विवाद रहा था, लेकिन मराठी भाषी जनसंख्या के बहुमत और आंदोलन के दबाव के चलते अंततः इसे महाराष्ट्र में शामिल किया गया।
इस अवसर पर महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री के रूप में यशवंतराव चव्हाण ने शपथ ली। उन्होंने राज्य के विकास और एकता की शपथ लेकर महाराष्ट्र के निर्माण की नई यात्रा की शुरुआत की।
1 मई 1960 को ही देश भर में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस (International Labour Day) भी मनाया जाता है, जिससे इस तारीख का महत्व और भी बढ़ जाता है। महाराष्ट्र दिवस और मजदूर दिवस, दोनों के आदर्श — संघर्ष, अधिकार और सम्मान — कहीं न कहीं एक-दूसरे से जुड़ते हैं।
इस ऐतिहासिक दिन की स्मृति में, हर साल महाराष्ट्र में 1 मई को झंडावंदन, परेड, सरकारी समारोह, सांस्कृतिक कार्यक्रम और कई तरह के आयोजन होते हैं। यह दिन महाराष्ट्र की एकता, मराठी अस्मिता और वर्षों के संघर्ष का प्रतीक बनकर हर वर्ष गर्व के साथ मनाया जाता है।
संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन का योगदान
महाराष्ट्र राज्य के निर्माण में संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। यह आंदोलन मराठी भाषी जनता की भावनाओं, आत्मसम्मान और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के संघर्ष का प्रतीक था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब देश में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग तेज हुई, तब मराठी भाषी लोगों ने भी अपनी पहचान के संरक्षण के लिए आवाज उठाई।
1956 में जब राज्य पुनर्गठन अधिनियम लागू हुआ, तब बॉम्बे राज्य को एक द्विभाषी राज्य के रूप में बनाए रखा गया, जिसमें मराठी और गुजराती भाषी समुदाय शामिल थे। इससे मराठी समाज में असंतोष बढ़ गया। मराठी भाषी जनता चाहती थी कि उन्हें एक अलग राज्य मिले, जहाँ उनकी भाषा, संस्कृति और परंपराओं को विशेष स्थान मिल सके।
इसी उद्देश्य को लेकर संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन की शुरुआत हुई। इस आंदोलन का नेतृत्व कई प्रमुख नेताओं ने किया, जिनमें प्रभाकर कुपटे, एस. एम. जोशी, प्रभुदास पटेल, शिवराम शंकर आपटे, और कई अन्य प्रसिद्ध सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल थे।
आंदोलन का नारा था —
“संयुक्त महाराष्ट्र होवा!” (संयुक्त महाराष्ट्र चाहिए!)
आंदोलन ने धीरे-धीरे जोर पकड़ लिया और लाखों लोगों ने सड़कों पर उतरकर रैलियों, धरनों और विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया। मुंबई को महाराष्ट्र में शामिल करने की मांग आंदोलन का प्रमुख केंद्र बिंदु थी। कई स्थानों पर आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें भी हुईं। सरकारी दमन के दौरान कई आंदोलनकारियों ने अपनी जान गंवाई। माना जाता है कि इस संघर्ष में लगभग 106 आंदोलनकारी शहीद हुए।
इन बलिदानों ने आंदोलन को और भी मजबूत बना दिया और सरकार पर दबाव बढ़ने लगा। जनता का समर्थन बढ़ता गया और धीरे-धीरे राजनीतिक वातावरण ऐसा बना कि केंद्र सरकार को मराठी जनता की मांगों के सामने झुकना पड़ा।
संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के इसी दबाव और बलिदान के परिणामस्वरूप 1 मई 1960 को महाराष्ट्र राज्य का गठन हुआ। इस आंदोलन ने केवल एक नए राज्य के निर्माण में भूमिका निभाई, बल्कि इसने मराठी जनता के आत्मसम्मान, भाषा प्रेम और सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिए एक मिसाल कायम की।
महाराष्ट्र दिवस का आज के समय में महत्व
महाराष्ट्र दिवस केवल राज्य के गठन की ऐतिहासिक घटना का स्मरण मात्र नहीं है, बल्कि यह आज के समय में भी गहरा सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व रखता है। यह दिन मराठी अस्मिता, एकता और संघर्ष की भावना का प्रतीक बन चुका है, जो हर साल नई ऊर्जा और प्रेरणा के साथ मनाया जाता है।
महाराष्ट्र भारत का एक प्रमुख राज्य है जो देश की अर्थव्यवस्था, संस्कृति, शिक्षा, कला और उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान देता है। मुंबई, पुणे, नागपुर, नासिक और औरंगाबाद जैसे शहर न केवल राज्य की पहचान हैं, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। 1 मई को मनाया जाने वाला महाराष्ट्र दिवस इन उपलब्धियों का उत्सव भी है, जहाँ राज्य की प्रगति और विकास का सम्मान किया जाता है।
आज के समय में महाराष्ट्र दिवस विभिन्न सरकारी और सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जाता है। इस दिन राजभवन और अन्य सरकारी कार्यालयों में ध्वजारोहण किया जाता है। पुलिस परेड, वीरता पुरस्कारों का वितरण, सांस्कृतिक कार्यक्रम, साहित्यिक गोष्ठियाँ और खेल प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। महाराष्ट्र के स्कूलों, कॉलेजों और संस्थाओं में भी विशेष कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जहाँ छात्रों को राज्य के इतिहास और गौरव से परिचित कराया जाता है।
महाराष्ट्र दिवस आज के समय में नागरिकों को अपने राज्य के प्रति गर्व, कर्तव्य और जिम्मेदारी का एहसास कराता है। यह दिन यह भी याद दिलाता है कि एकजुटता, संघर्ष और संकल्प के बल पर किस प्रकार एक अलग पहचान और सम्मान प्राप्त किया जा सकता है। आधुनिक महाराष्ट्र विविधताओं के बीच एकता का आदर्श प्रस्तुत करता है, और हर साल 1 मई को यह संदेश फिर से दोहराया जाता है।
महाराष्ट्र दिवस कैसे मनाया जाता है?
हर साल 1 मई को महाराष्ट्र दिवस पूरे राज्य में बड़े उत्साह, गर्व और सम्मान के साथ मनाया जाता है। यह दिन न केवल राज्य के गठन की स्मृति है, बल्कि महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत, उपलब्धियों और एकता का उत्सव भी है। इस दिन राज्य सरकार, विभिन्न संस्थाएँ, शैक्षणिक संस्थान और आम नागरिक मिलकर कई प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
सुबह राजभवन और विभिन्न सरकारी कार्यालयों में झंडारोहण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। राज्यपाल ध्वजारोहण करते हैं और इसके बाद राज्य गीत “जय जय महाराष्ट्र माझा” गाया जाता है। इसके बाद पुलिस परेड का आयोजन होता है, जिसमें राज्य की सुरक्षा और सेवा भावना को प्रदर्शित किया जाता है।
महाराष्ट्र सरकार इस दिन समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों को पुरस्कार और सम्मान प्रदान करती है। कला, साहित्य, शिक्षा, खेल और सामाजिक सेवा जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वालों को विशेष रूप से सम्मानित किया जाता है।
स्कूलों और कॉलेजों में भी इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। निबंध प्रतियोगिताएँ, भाषण प्रतियोगिताएँ, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और नाटकों के माध्यम से छात्रों को महाराष्ट्र के इतिहास और संस्कृति के प्रति जागरूक किया जाता है। कई स्थानों पर रैलियाँ और झांकियाँ निकाली जाती हैं, जिनमें महाराष्ट्र की विविधता और गौरव को दर्शाया जाता है।
इसके अलावा, महाराष्ट्र में कई स्कूलों में कक्षा 1 से लेकर 9वीं तक के छात्रों के परिणाम (रिजल्ट) भी इसी दिन, यानी 1 मई को घोषित किए जाते हैं। इससे छात्रों के लिए यह दिन और भी विशेष बन जाता है, क्योंकि यह उनके शैक्षणिक वर्ष के समापन और नई कक्षा में प्रवेश का संकेत देता है।
टीवी चैनलों और रेडियो पर महाराष्ट्र के इतिहास, आंदोलन और उपलब्धियों पर आधारित विशेष कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। मराठी संगीत, लोकनृत्य, कवि सम्मेलन और साहित्यिक चर्चाएँ भी इस दिन के विशेष आकर्षण होते हैं।
इसके अलावा कई निजी कंपनियाँ और संस्थाएँ भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सामूहिक आयोजनों और सामाजिक सेवा गतिविधियों जैसे वृक्षारोपण, रक्तदान शिविर और स्वच्छता अभियानों का आयोजन करती हैं।
इस प्रकार, महाराष्ट्र दिवस केवल एक औपचारिक समारोह नहीं है, बल्कि यह राज्य के प्रति प्रेम, गर्व और जिम्मेदारी की भावना को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण अवसर बन चुका है।
महाराष्ट्र दिवस से जुड़े रोचक तथ्य
महाराष्ट्र दिवस केवल एक राज्य के गठन की वर्षगांठ नहीं है, बल्कि इससे जुड़े कई ऐसे तथ्य भी हैं जो इसे और अधिक खास बनाते हैं। ये तथ्य न केवल इतिहास को रोचक बनाते हैं, बल्कि महाराष्ट्र के सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को भी रेखांकित करते हैं।
- बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम का प्रभाव:
1 मई 1960 को लागू हुए बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम के तहत बॉम्बे राज्य को दो हिस्सों में बाँटा गया — महाराष्ट्र और गुजरात। इस कानून ने भारतीय राज्यों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण बदलाव को चिन्हित किया। - मुंबई को लेकर संघर्ष:
मुंबई को लेकर महाराष्ट्र और गुजरात दोनों में खींचतान रही थी। लेकिन मुंबई में मराठी भाषी आबादी अधिक होने के कारण इसे महाराष्ट्र का हिस्सा बनाया गया। मुंबई को महाराष्ट्र की राजधानी घोषित किया गया। - संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में बलिदान:
महाराष्ट्र राज्य की स्थापना के लिए हुए आंदोलन में लगभग 106 लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। इन शहीदों की याद में हर साल श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। - अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस भी:
1 मई को न केवल महाराष्ट्र दिवस मनाया जाता है, बल्कि यह दिन अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस (Labour Day) के रूप में भी मनाया जाता है। दोनों अवसर संघर्ष और अधिकारों के लिए लड़ाई के प्रतीक हैं। - भारत की आर्थिक राजधानी:
महाराष्ट्र का प्रमुख शहर मुंबई आज भारत की आर्थिक राजधानी कहलाता है। यहां शेयर बाजार, फिल्म उद्योग (बॉलीवुड) और कई बड़े उद्योगों का मुख्यालय स्थित है। - सबसे अधिक जीडीपी योगदान:
महाराष्ट्र भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सबसे अधिक योगदान देने वाला राज्य है। यह राज्य औद्योगिक, वाणिज्यिक और वित्तीय गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र है। - भाषा और संस्कृति का केंद्र:
महाराष्ट्र अपनी मराठी भाषा, साहित्य, संगीत, नृत्य और कला के लिए प्रसिद्ध है। यह राज्य संत साहित्य, लोक परंपराओं और आधुनिक प्रगतिशील सोच का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है। - राज्य के प्रतीक:
महाराष्ट्र का राज्य पशु भारतीय विशाल गिलहरी (Indian Giant Squirrel) है, जबकि राज्य पक्षी हरियाल (Green Pigeon) और राज्य फूल जारुल (Jarul) है।