आजकल शहरों में मकान किराए पर लेना और देना बहुत सामान्य हो गया है। लेकिन अक्सर देखा गया है कि बिना लिखित अनुबंध के मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। इसी कारण “Rent Agreement” यानी किराये का एग्रीमेंट करना अनिवार्य और कानूनी दृष्टि से ज़रूरी माना जाता है। यह लेख विस्तार से बताता है कि किराये का एग्रीमेंट क्या होता है, महाराष्ट्र में इसे कैसे और कितने समय के लिए किया जाता है, इसके लिए किन दस्तावेज़ों और प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
किराये का एग्रीमेंट क्या है?
किराये का एग्रीमेंट एक लिखित कानूनी दस्तावेज़ है जो मकान मालिक और किरायेदार के बीच किया जाता है। इसमें यह निर्धारित होता है कि कौन सी संपत्ति किराए पर दी जा रही है, उसका उपयोग किस लिए होगा, किराए की राशि कितनी होगी, भुगतान कैसे होगा, अनुबंध की अवधि कितनी होगी, और दोनों पक्षों की जिम्मेदारियाँ व अधिकार क्या होंगे। यह समझौता दोनों पक्षों के लिए सुरक्षा की गारंटी देता है और किसी भी विवाद की स्थिति में कानूनी सबूत का काम करता है।
महाराष्ट्र में किराये का एग्रीमेंट की अवधि
सामान्यत: महाराष्ट्र में किराये का एग्रीमेंट 11 महीनों के लिए किया जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि 12 महीने या उससे अधिक के लिए किया गया एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन ऑफिस में पंजीकृत कराना अनिवार्य होता है।
- 11 महीने का अनुबंध करना अधिक सरल और सुविधाजनक होता है और इसे ऑनलाइन या ऑफलाइन पद्धति से रजिस्टर्ड किया जा सकता है।
- यदि अनुबंध 12 महीने या उससे अधिक का है तो इसे सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में पंजीकरण कराना कानूनी दृष्टि से ज़रूरी है।
अनुबंध में शामिल होने वाली महत्वपूर्ण बातें
एग्रीमेंट करते समय निम्नलिखित बातों का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए:
संपत्ति का पूरा पता और विवरण जैसे फ्लैट, दुकान या गोदाम। किराए की राशि और भुगतान की पद्धति जैसे कैश, बैंक ट्रांसफर या UPI। डिपॉज़िट राशि कितनी है और उसे कब तथा कैसे वापस किया जाएगा। बिजली, पानी और सोसाइटी चार्जेज़ का भुगतान कौन करेगा। अनुबंध की अवधि कितनी होगी, सामान्यतः यह 11 महीने का होता है। नोटिस पीरियड कितना होगा, प्रायः यह 1 महीने का रखा जाता है। संपत्ति का उपयोग केवल निवास के लिए होगा या व्यावसायिक प्रयोजन के लिए।
आवश्यक दस्तावेज़
मालिक से:
मकान मालिक को अपना आधार कार्ड या पैन कार्ड देना होता है। इसके अलावा संपत्ति स्वामित्व का प्रमाण जैसे Sale Deed, 7/12 उतारा या प्रॉपर्टी टैक्स की रसीद प्रस्तुत करनी पड़ती है।
किरायेदार से:
किरायेदार को आधार कार्ड या पैन कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो और पता प्रमाण देना होता है। पता प्रमाण के लिए पुराने किराये का अनुबंध, बिजली बिल या ड्राइविंग लाइसेंस मान्य हो सकता है।
महाराष्ट्र में Rent Agreement बनाने की प्रक्रिया
ऑनलाइन पद्धति (e-Registration)
महाराष्ट्र सरकार ने e-Registration की सुविधा उपलब्ध कराई है जिससे किराये का अनुबंध घर बैठे तैयार और रजिस्टर्ड किया जा सकता है। इसके लिए https://igrmaharashtra.gov.in वेबसाइट पर जाकर Rent Agreement विकल्प चुना जाता है। दोनों पक्षों की जानकारी, संपत्ति का विवरण, गवाहों की जानकारी भरनी होती है। इसके बाद स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क ऑनलाइन भुगतान किया जाता है। आधार कार्ड के ज़रिए बायोमेट्रिक फिंगरप्रिंट देकर अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाते हैं। अंत में PDF स्वरूप में पंजीकृत अनुबंध प्राप्त हो जाता है।
ऑफलाइन पद्धति (Sub-Registrar Office)
ऑफलाइन पद्धति में वकील या टाइपिस्ट से अनुबंध तैयार कराया जाता है और उपयुक्त मूल्य का स्टाम्प पेपर लिया जाता है। अनुबंध पर दोनों पक्षों और गवाहों के हस्ताक्षर किए जाते हैं। फिर Sub-Registrar ऑफिस में पंजीकरण कराया जाता है और पंजीकरण शुल्क (आमतौर पर ₹1000 से ₹1500) जमा किया जाता है। इसके बाद पंजीकृत अनुबंध की मूल प्रति मिलती है।
स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क
महाराष्ट्र में किराये के अनुबंध पर स्टाम्प ड्यूटी किराए और डिपॉज़िट की कुल राशि पर आधारित होती है। सामान्यतः 11 महीने के अनुबंध पर 0.25% से 0.5% तक स्टाम्प ड्यूटी लगती है और न्यूनतम शुल्क ₹1000 होता है।
पुलिस वेरिफिकेशन
महाराष्ट्र में किरायेदार को मकान देने से पहले पुलिस स्टेशन में Tenant Verification Form भरना आवश्यक है। यह प्रक्रिया मकान मालिक और किरायेदार दोनों की सुरक्षा के लिए होती है। कई सोसाइटी तब तक प्रवेश की अनुमति नहीं देतीं जब तक पुलिस वेरिफिकेशन पूरा न हो।
सोसाइटी की अनुमति
यदि मकान किसी सोसाइटी में है तो किरायेदार को रहने से पहले सोसाइटी से NOC लेना आवश्यक है। कुछ सोसाइटी अपनी ओर से निर्धारित किरायेदार फॉर्मेट का उपयोग करने को भी कह सकती हैं।
लॉक-इन पीरियड
अक्सर अनुबंध में यह शर्त लिखी जाती है कि किरायेदार पहले 6 महीने तक मकान खाली नहीं कर सकता। इस शर्त से मालिक को स्थिर आय की गारंटी मिलती है और किरायेदार को रहने की सुरक्षा।
डिपॉज़िट की शर्तें
महाराष्ट्र में डिपॉज़िट राशि लौटाते समय ब्याज सहित लौटाना अनिवार्य नहीं है। लेकिन यदि अनुबंध में यह स्पष्ट रूप से लिखा हो तो ब्याज भी लौटाना पड़ सकता है। भुगतान बैंक ट्रांसफर या चेक द्वारा करना अधिक सुरक्षित माना जाता है।
मकान की स्थिति (Condition Report)
किरायेदार के प्रवेश से पहले मकान की स्थिति का फोटो या वीडियो रिकॉर्ड बनाना चाहिए। “As is where is condition” अनुबंध में लिखना उपयोगी होता है ताकि बाद में कोई विवाद न हो।
सबलेटिंग (Subletting)
अनुबंध में यह साफ लिखा होना चाहिए कि किरायेदार मकान को किसी और को सबलेट नहीं कर सकता। बिना अनुमति यदि ऐसा किया जाता है तो इसे अवैध माना जाएगा।
एग्रीमेंट का नवीनीकरण (Renewal)
अनुबंध समाप्त होने से कम से कम एक माह पहले नवीनीकरण पर दोनों पक्षों को सहमति बनानी चाहिए। नवीनीकरण के लिए फिर से e-Registration या Sub-Registrar ऑफिस में पंजीकरण कराना पड़ता है।
सरकारी नियम
महाराष्ट्र Rent Control Act, 1999 के अंतर्गत कुछ पुराने किरायों और विशेष परिस्थितियों में अलग नियम लागू होते हैं। हालांकि साधारण 11 महीने का अनुबंध इन कठोर प्रावधानों से बचाता है।
व्यावसायिक किराया समझौता
यदि संपत्ति व्यावसायिक उपयोग के लिए किराए पर दी जा रही है तो ऊँची स्टाम्प ड्यूटी लागू होती है। साथ ही स्थानीय पालिका से Trade License और Shop Act License लेना अनिवार्य होता है।
महत्वपूर्ण सुझाव
किराये का अनुबंध हमेशा लिखित होना चाहिए। केवल मौखिक समझौते पर भरोसा नहीं करना चाहिए। अनुबंध में नोटिस पीरियड स्पष्ट लिखा होना चाहिए। यदि संपत्ति व्यावसायिक उपयोग में है तो Shop Act License लेना आवश्यक है। अनुबंध की प्रत्येक प्रति पर दोनों पक्षों और गवाहों के हस्ताक्षर होना ज़रूरी है।
किराये का एग्रीमेंट केवल एक कागज़ी प्रक्रिया नहीं बल्कि एक कानूनी कवच है, जो मकान मालिक और किरायेदार दोनों के अधिकारों और कर्तव्यों की रक्षा करता है। सही दस्तावेज़, प्रक्रिया और नियमों का पालन करके न केवल विवादों से बचा जा सकता है बल्कि पारदर्शी और सुरक्षित संबंध भी स्थापित किए जा सकते हैं।
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