भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ प्रत्येक राज्य को अपना स्वतंत्र सरकार चलाने का अधिकार प्राप्त है। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जब राज्य में संविधान के अनुसार सरकार चलाना संभव नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए, यदि किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलता या राज्य में कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है, तो शासन ठप्प पड़ जाता है। ऐसे समय में केंद्र सरकार राज्य पर प्रत्यक्ष नियंत्रण ले लेती है और राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 में वर्णित एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। इस लेख में हम राष्ट्रपति शासन की वजहें, प्रक्रिया, अवधि, प्रभाव, न्यायालय के निर्णय और ऐतिहासिक उदाहरण विस्तार से जानेंगे।

अनुच्छेद 356 और राष्ट्रपति शासन

Anuchhed 356 aur Rashtrapati Shasan: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, यदि राज्यपाल केंद्र सरकार को यह रिपोर्ट भेजता है कि राज्य में संविधान के अनुसार सरकार चलाना संभव नहीं है, तो राष्ट्रपति उस राज्य में आपातकाल जैसी स्थिति घोषित कर प्रशासन अपने हाथ में ले सकता है। इस स्थिति को “राष्ट्रपति शासन” कहा जाता है। इसका उद्देश्य प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारू रखना है, लेकिन इसके दुरुपयोग से बचने के लिए संविधान ने विशेष प्रक्रियाएँ और सीमाएँ तय की हैं।

राष्ट्रपति शासन कब लागू होता है?

Rashtrapati Shasan kab lagu hota hai: राष्ट्रपति शासन लागू होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. राजनीतिक अस्थिरता: चुनाव के बाद किसी भी दल को बहुमत न मिलना और सरकार का गठन न होना।
  2. मुख्यमंत्री का इस्तीफा: मुख्यमंत्री इस्तीफा दे दे और नया बहुमत न जुट पाए।
  3. कानून-व्यवस्था का ध्वस्त होना: दंगे, विद्रोह, आतंकवाद या गंभीर अव्यवस्था।
  4. संविधान का उल्लंघन: राज्य सरकार द्वारा बार-बार संविधान का उल्लंघन या केंद्र के आदेशों की अवहेलना।
  5. विशेष परिस्थितियाँ: प्राकृतिक आपदा या ऐसी स्थिति जब राज्य सरकार काम करने में असमर्थ हो।

Rashtrapati Shasan लागू होने पर क्या होता है?

  • मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद बर्खास्त कर दी जाती है। इसका अर्थ है कि राज्य में चुनी हुई सरकार अस्थायी रूप से समाप्त हो जाती है और सारी कार्यकारी शक्तियाँ केंद्र के अधीन चली जाती हैं। इससे राज्य की राजनीति में बड़ा बदलाव आता है और लोकतांत्रिक ढाँचा अस्थायी रूप से ठहर जाता है।
  • राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। इस दौरान वह न केवल औपचारिक प्रमुख होता है बल्कि व्यावहारिक रूप से भी सारे निर्णय उसी के माध्यम से लागू किए जाते हैं। वह सीधे राष्ट्रपति और केंद्र सरकार को रिपोर्ट भेजता है और उनके आदेशों का पालन करवाता है।
  • विधानसभा को स्थगित या भंग कर दिया जाता है। यदि विधानसभा स्थगित की जाती है तो वह केवल नाममात्र की रहती है, लेकिन कोई नया कानून या नीति पारित नहीं कर सकती। अगर भंग कर दी जाती है तो नए चुनाव कराना अनिवार्य हो जाता है।
  • राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था सीधे केंद्र सरकार के आदेशों से चलती है। वित्त, शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था जैसे सभी विभाग अब केंद्र से दिशा-निर्देश पाते हैं। राज्य सरकार के बजाय मंत्रालयों और सचिवों की भूमिका केंद्र के आदेशों पर आधारित हो जाती है।
  • सभी सरकारी अधिकारी केंद्र के अधीन हो जाते हैं। उन्हें राज्यपाल और केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए निर्देशों का पालन करना अनिवार्य होता है। अधिकारियों की जवाबदेही अब राज्य की विधानसभा या मुख्यमंत्री के बजाय सीधे केंद्र और राष्ट्रपति के प्रति होती है।
  • राज्य से संबंधित सभी निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिए जाते हैं। इसमें बजट आवंटन, विकास योजनाएँ, नीतिगत बदलाव, प्रशासनिक तबादले, कानून-व्यवस्था बनाए रखने के कदम आदि शामिल होते हैं। यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि राज्य की शासन प्रणाली बाधित न हो, परंतु लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया अस्थायी रूप से केंद्रित हो जाती है।

राष्ट्रपति शासन की अवधि

  • शुरुआत में राष्ट्रपति शासन 6 महीने के लिए लागू किया जाता है।
  • अधिकतम 3 वर्ष तक इसे बढ़ाया जा सकता है, लेकिन हर 6 महीने पर संसद से अनुमति लेना आवश्यक है।
  • यदि संसद अनुमति न दे तो राष्ट्रपति शासन स्वतः समाप्त हो जाता है।
  • हालात सुधरने पर चुनाव कराकर लोकतांत्रिक सरकार बहाल की जाती है।

उदाहरण: महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन

2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। शिवसेना, कांग्रेस और NCP की सरकार बनने से पहले कुछ समय तक महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि राजनीतिक अस्थिरता राष्ट्रपति शासन का बड़ा कारण हो सकता है। इससे पहले 1980 और 2014 में भी महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था।

राष्ट्रपति शासन लागू करने की प्रक्रिया

  1. राज्यपाल केंद्र सरकार को रिपोर्ट भेजता है।
  2. केंद्रीय मंत्रिमंडल प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में रिपोर्ट पर विचार करता है।
  3. राष्ट्रपति आदेश जारी करता है।
  4. संसद में 2 महीने के भीतर इसकी मंजूरी आवश्यक है।
  5. हर 6 महीने बाद नया अनुमोदन लेना होता है।
  6. अधिकतम 3 वर्ष तक ही इसे लागू रखा जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय: SR Bommai Case (1994)

1994 में सर्वोच्च न्यायालय ने SR Bommai केस में ऐतिहासिक निर्णय दिया:

  • केंद्र सरकार मनमानी तरीके से राष्ट्रपति शासन लागू नहीं कर सकती।
  • राज्य सरकार को बहुमत साबित करने का अवसर देना आवश्यक है।
  • न्यायालय राष्ट्रपति शासन की वैधता की समीक्षा कर सकता है।
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुरक्षित रखने के लिए संवैधानिक नियंत्रण जरूरी है।

इस निर्णय ने राज्यों को सुरक्षा प्रदान की और लोकतंत्र को मजबूत किया।

महाराष्ट्र में कितनी बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ?

  • 1980 : इस वर्ष महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष और बहुमत न मिलने की वजह से राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।
  • 2014 : विधानसभा चुनावों के बाद स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता पैदा हुई और राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।
  • 2019 : चुनाव परिणामों के बाद सरकार गठन में विलंब हुआ, जिससे अस्थिरता बनी रही और राष्ट्रपति शासन लगाया गया।

हर बार की स्थिति में यह साफ देखा गया कि राजनीतिक अस्थिरता ही प्रमुख कारण रही।

राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या नहीं होता?

  • मुख्यमंत्री नहीं होता।
  • मंत्रिपरिषद नहीं होती।
  • राज्य की नीतियाँ केंद्र पर निर्भर होती हैं।
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया अस्थायी रूप से ठहर जाती है।
  • विधानसभा के अधिकार स्थगित हो जाते हैं।

राष्ट्रपति शासन से जुड़े भ्रांतियाँ

  1. राष्ट्रपति स्वयं निर्णय नहीं लेता: वह केंद्र सरकार की सलाह पर निर्णय करता है।
  2. राष्ट्रपति शासन सैन्य शासन नहीं है: राज्यपाल के माध्यम से शासन चलता है।
  3. कायमस्वरूप बदलाव नहीं होता: राष्ट्रपति शासन अस्थायी उपाय है।

राष्ट्रपति शासन के प्रभाव

  • केंद्र सरकार राज्य पर प्रत्यक्ष नियंत्रण कर लेती है।
  • विकास योजनाएँ प्रभावित हो सकती हैं।
  • चुनाव तक प्रशासनिक कार्यवाही जारी रहती है।
  • सरकारी कर्मचारी केंद्र के आदेशों पर काम करते हैं।
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अस्थायी अवरोध आता है।

राष्ट्रपति शासन वाले प्रमुख राज्य

  1. उत्तर प्रदेश: कई बार राजनीतिक अस्थिरता के कारण।
  2. पंजाब (1987-1992): आतंकवाद और चरमपंथ के कारण।
  3. महाराष्ट्र (2019): सरकार गठन न होने के कारण।

राष्ट्रपति शासन का महत्व

राष्ट्रपति शासन लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए संविधान द्वारा दी गई व्यवस्था है। यह राजनीतिक अस्थिरता को रोकने और प्रशासनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए लागू किया जाता है। हालांकि, इसके दुरुपयोग की संभावना को देखते हुए संसद और न्यायालय का नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है। यह लोकतांत्रिक स्थिरता बनाए रखने का साधन है, लेकिन केवल अस्थायी उपाय के रूप में ही लागू किया जाता है।

राष्ट्रपति शासन भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने वाली संवैधानिक व्यवस्था है। जब राज्य में संविधान के अनुसार सरकार चलाना असंभव हो जाता है, तब इसे लागू कर स्थिरता लाई जाती है। यह स्थायी उपाय नहीं है, बल्कि केंद्र और राज्य के बीच संतुलन बनाए रखने का एक संवैधानिक साधन है।

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