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महाराष्ट्र के कोल्हापुर ज़िले के नांदनी गांव में इन दिनों एक अनोखा और चर्चित आंदोलन देखने को मिल रहा है। यहां के ग्रामीणों ने जिओ (Jio (जिओ)) का बहिष्कार करते हुए हजारों की संख्या में अपने सिम Airtel (एयरटेल) में पोर्ट कर दिए हैं। इस पूरे घटनाक्रम का केंद्र बनी है एक elephant Mahadevi (हत्तीणी), जिसे ग्रामीण श्रद्धा से Mahadevi (महादेवी) कहकर पुकारते हैं। यह विरोध केवल एक टेलीकॉम कंपनी या सेवा प्रदाता के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और धार्मिक जुड़ाव से उपजा व्यापक जन आंदोलन बन गया है।
नांदनी गांव के दिगंबर Jain monastery (जैन मठ) में पिछले 33 वर्षों से एक elephant Mahadevi (हत्तीणी) निवास कर रही थी। उसे न सिर्फ मठ के लिए बल्कि पूरे गांव के लिए श्रद्धा और आदर का प्रतीक माना जाता था। धार्मिक अनुष्ठानों, पर्वों और जुलूसों में Mahadevi hattin (महादेवी) की उपस्थिति को शुभ माना जाता था। गांववालों के अनुसार, वह केवल एक जानवर नहीं बल्कि वर्षों पुरानी परंपरा, शांति और श्रद्धा की मूर्त प्रतीक बन चुकी थी।
हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि Mahadevi hattin (महादेवी) elephant Mahadevi (हत्तीणी) को गुजरात के जामनगर स्थित Reliance Foundation (रिलायंस फाउंडेशन) के वंतारा wildlife rescue center (वन्यजीव संरक्षण केंद्र) में स्थानांतरित किया जाए। कोर्ट के इस फैसले का उद्देश्य पशु कल्याण हो सकता है, लेकिन गांव में इसका असर बिल्कुल विपरीत दिखा। ग्रामीणों ने कहा कि Mahadevi (महादेवी) उनके समाज का हिस्सा है, उसकी विदाई उनके लिए भावनात्मक आघात है। उनका यह भी मानना है कि यह परंपरा के उल्लंघन जैसा है और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
कोर्ट के आदेश के बाद जैसे ही प्रशासन ने कार्रवाई शुरू की, नांदनी गांव में विरोध की लहर फैल गई। ‘#SaveMahadevi (सेव Mahadevi (महादेवी))’ और ‘#BoycottJio (बॉयकॉट जिओ) (जिओ)’ जैसे हैशटैग सोशल मीडिया पर तेजी से ट्रेंड करने लगे। युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों ने मिलकर विरोध प्रदर्शन शुरू किया। कई लोगों ने रिलायंस ब्रांड की सेवाओं को पूरी तरह से त्यागने का निर्णय लिया। सोशल मीडिया के माध्यम से यह मुद्दा न सिर्फ जिले, बल्कि राज्यभर में चर्चा का विषय बन गया।
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अब तक लगभग 7000 से अधिक ग्रामीणों ने अपने Jio (जिओ) सिम कार्ड पोर्ट कर Airtel (एयरटेल) या अन्य टेलीकॉम कंपनियों में स्थानांतरित कर दिए हैं। यह संख्या नांदनी जैसे छोटे गांव के लिए बेहद बड़ी मानी जा रही है। इससे यह भी पता चलता है कि गांववाले केवल नाराज़ नहीं हैं, बल्कि उन्होंने सामूहिक रूप से एक आर्थिक और सामाजिक संदेश देने की ठानी है।
नांदनी गांव स्थित Jain monastery (जैन मठ) का धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है। यहां का मठ जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक आस्था का केंद्र रहा है। Mahadevi hattin (महादेवी) को मठ की प्रतिष्ठा और धार्मिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। इसलिए जब Mahadevi hattin (महादेवी) को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू हुई, तो जैन समाज के लोगों ने इसका विरोध किया और इसे धार्मिक आस्था पर हमला बताया। मठ के प्रमुखों और श्रद्धालुओं ने इसे सिरे से नकारा और प्रशासन से पुनर्विचार की मांग की।
यह मामला धीरे-धीरे राजनैतिक रंग भी लेने लगा है। कोल्हापुर और सीमावर्ती कर्नाटक क्षेत्र के जैन और मराठा समाज से जुड़े नेता इस विषय पर सक्रिय हो गए हैं। कुछ नेताओं ने समर्थन में पदयात्रा निकाली, तो कुछ ने जिलाधिकारी कार्यालय पर ज्ञापन सौंपा। साथ ही यह भी देखा गया कि राजनीतिक दलों ने इसे चुनावी मुद्दे के रूप में भी भुनाने की कोशिश की है। यह मुद्दा अब केवल धार्मिक या भावनात्मक नहीं रह गया है, बल्कि इसमें सामाजिक और राजनैतिक पक्ष भी जुड़ गए हैं।
नांदनी गांव में चल रहे आंदोलन से पहले भी महाराष्ट्र में इस प्रकार की घटनाएं हो चुकी हैं। वर्ष 2007 में ‘सुंदर’ नामक एक हाथी को लेकर बड़ा विवाद हुआ था, जब उसे मंदिर से हटाने के आदेश के विरोध में आंदोलन छेड़ दिया गया था। उस समय भी धार्मिक आस्था और पशु के प्रति भावना के चलते लोगों ने व्यापक स्तर पर विरोध किया था।
Mahadevi hattin (महादेवी) elephant Mahadevi (हत्तीणी) को लेकर चल रहे वर्तमान आंदोलन में भी ऐसी ही भावनात्मक प्रतिक्रिया देखी जा रही है। यह मामला अब केवल गांव तक सीमित नहीं है। सोशल मीडिया, स्थानीय मीडिया और राजनीतिक हलकों में यह मुद्दा लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। लोगों की भावनाएं और धार्मिक मान्यताएं इस पूरे घटनाक्रम को बेहद संवेदनशील और जटिल बना रही हैं।