भारत में घर, जमीन या वाणिज्यिक संपत्ति को गहाण रखकर कर्ज लेना एक सामान्य वित्तीय प्रथा है, जिसे अंग्रेज़ी में Mortgage और हिंदी/मराठी में प्रायः गहाणखत या तारण कहा जाता है। सरल शब्दों में, जब किसी व्यक्ति या व्यवसाय को धन की आवश्यकता होती है और वह अपनी किसी अचल संपत्ति (घर/जमीन/फ्लैट/दुकान आदि) को बैंक या वित्तीय संस्था के पास सुरक्षा (Collateral) के रूप में रखकर ऋण लेता है, तो कर्ज चुकता होने तक उस संपत्ति पर ऋणदाता का वैधानिक अधिकार बन जाता है। कर्ज का मूलधन व ब्याज संपूर्ण रूप से अदा होते ही यह अधिकार समाप्त होता है और संपत्ति पर उधारकर्ता का स्वामित्व बिना किसी बंधन के पुनः पूर्ण रूप से स्थापित हो जाता है।
मॉर्गेज की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
घरेलू ज़रूरतों, घर खरीदने, व्यवसाय बढ़ाने, शिक्षा/चिकित्सा जैसे बड़े खर्चों, या पहले से मौजूद ऊँचे ब्याज वाले ऋणों के समेकन के लिए अनेक लोग मॉर्गेज आधारित ऋण लेते हैं। Loan Against Property (LAP) भी इसी श्रेणी का एक लोकप्रिय विकल्प है, जिसमें संपत्ति पर किसी और का दावा न हो और वह पूर्णतः आपके नाम हो, तो उसके बदले बैंक/एनबीएफसी से बड़ी राशि का ऋण लिया जा सकता है। LAP का उपयोग प्रायः व्यवसायिक विस्तार, कार्यशील पूँजी, उच्च शिक्षा, चिकित्सा जैसी आवश्यकताओं के लिए किया जाता है।
कानूनी ढाँचा: कौन‑कौन से कानून लागू होते हैं?
भारतीय क़ानून मॉर्गेज से जुड़े अधिकार‑कर्तव्यों और प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं। Transfer of Property Act, 1882 में मॉर्गेज के प्रकार और उनके नियमों का विस्तृत उल्लेख है। Indian Registration Act, 1908 के अनुसार कुछ प्रकार के मॉर्गेज की रजिस्ट्रेशन (नोंदणी) आवश्यक होती है—रजिस्ट्रेशन होने पर दस्तावेज़ों को वैधानिक मज़बूती मिलती है और भविष्य में स्वामित्व/दावे के विवादों का जोखिम घटता है। अगर उधारकर्ता लगातार चूक करता है, तो SARFAESI Act, 2002 ऋणदाता को वैधानिक प्रक्रिया के जरिए गहाण संपत्ति पर कब्ज़ा लेकर वसूली करने का अधिकार देता है। इन नियमों की उपस्थिति उधारकर्ता और ऋणदाता—दोनों के हितों की रक्षा करती है, बशर्ते प्रक्रिया पारदर्शी और दस्तावेज़ी रूप से सही ढंग से की जाए।
मॉर्गेज कैसे काम करता है?
मॉर्गेज में सामान्यतः चार प्रमुख पक्ष/घटक होते हैं—(1) Mortgagor यानी उधारकर्ता/संपत्ति का स्वामी जो संपत्ति गहाण रखता है, (2) Mortgagee यानी बैंक/एनबीएफसी/ऋणदाता संस्था जिसके पास संपत्ति पर अधिकार बनता है, (3) Mortgage Deed यानी वह वैधानिक दस्तावेज़ जो ऋण व सुरक्षा की शर्तों को दर्ज करता है, और (4) ऋण की शर्तें—ऋण राशि (Principal), ब्याज दर (Interest Rate), अवधि (Loan Tenure), पुनर्भुगतान अनुसूची (EMI) और बंधक/तारण से जुड़ी वचनबद्धताएँ। मॉर्गेज डीड में सामान्यतः यह उल्लेख रहता है कि ऋण समय पर नहीं चुकाने पर ऋणदाता किन शर्तों के तहत वसूली की कार्यवाही कर सकता है।
मॉर्गेज के प्रमुख प्रकार
भारतीय प्रचलन में मॉर्गेज के कई रूप मिलते हैं। सिंपल (Simple) मॉर्गेज में यदि उधारकर्ता ऋण नहीं चुकाता तो बैंक को संपत्ति विक्रय का अधिकार मिलता है—परंतु स्वामित्व तब तक उधारकर्ता के पास ही रहता है। यूज़ुफ्रक्ट्यूरी (Usufructuary) मॉर्गेज में ऋणदाता को संपत्ति से होने वाली आय (जैसे किराया) का अधिकार मिलता है और इसी आय से वसूली की जाती है। इंग्लिश (English) मॉर्गेज में स्वामित्व अस्थायी रूप से ऋणदाता के पास चला जाता है और ऋण चुकाने पर पुनः लौटाया जाता है। इक्विटेबल (Equitable) मॉर्गेज में पंजीकृत डीड आवश्यक नहीं होती; उधारकर्ता मूल शीर्षक दस्तावेज़ बैंक के पास जमा कर देता है और इसी जमा पर ऋण स्वीकृत होता है—आवासीय ऋणों में यह बहुत प्रचलित है।
सावधानी: पंजीकृत मॉर्गेज होने पर दस्तावेज़ न्यायसंगत रूप से अधिक सशक्त माने जाते हैं; जबकि इक्विटेबल मॉर्गेज में भी वैधानिकता है, पर भविष्य में विवाद की स्थिति में रजिस्टर्ड दस्तावेज़ का साक्ष्य‑बल अधिक माना जाता है। इसलिए जिस रूप में भी मॉर्गेज लें, सभी कागज़ात और बैंक की शर्तें लिखित में स्पष्ट रखें।
रजिस्ट्रेशन, EC और सार्वजनिक अभिलेख
जहाँ रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है, वहाँ Sub‑Registrar कार्यालय में मॉर्गेज डीड दर्ज कराई जाती है। इस प्रविष्टि का प्रभाव यह होता है कि संबंधित संपत्ति के EC पर आम तौर पर केवल ‘रजिस्टर्ड’ दावे/चार्ज ही दिखते हैं। Equitable mortgage (सिर्फ़ टाइटल-डीड जमा करके) यदि बिना किसी रजिस्टर्ड मेमो/डीड के बनाया गया हो, तो वह EC में दिखाई नहीं भी दे सकता। इसलिए जाँच के समय EC के साथ CERSAI/बैंक-चार्ज सर्च और संबंधित राज्य के रजिस्ट्रेशन अभिलेख भी अवश्य देखें। इसलिए, संपत्ति खरीदते समय ताज़ा EC देखना अत्यंत आवश्यक माना जाता है।
किन ऋणों में मॉर्गेज लगता है?
घर खरीदने के लिए लिया गया Home Loan, व्यापार के लिए Business Loan, जमीन/मकान के बदले लिया गया Personal Loan (Secured), तथा Loan Against Property (LAP)—ये सभी मॉर्गेज आधारित वित्तपोषण के सामान्य उदाहरण हैं।
पात्रता और मूल्यांकन कैसे होता है?
ऋणदाता सबसे पहले उधारकर्ता की आय, चुकाने की क्षमता और क्रेडिट इतिहास (CIBIL/credit score) का आकलन करता है। साथ ही गहाण रखी जाने वाली संपत्ति का टाइटल वैध है या नहीं, इस हेतु विधिक जाँच (Legal Scrutiny) और तकनीकी मूल्यांकन (Valuation) कराया जाता है। प्रायः ऋण राशि संपत्ति के बाज़ार मूल्य के निश्चित अनुपात (LTV—Loan to Value) तक ही स्वीकृत होती है। EMI की क्षमता आय/व्यय और अन्य मौजूदा ऋणों को देखकर तय होती है। यदि आय अनियमित हो, दस्तावेज़ अपूर्ण हों या CIBIL स्कोर बहुत कम हो, तो ऋण महँगा या अस्वीकृत हो सकता है।
दस्तावेज़ और प्रक्रिया (संक्षेप में)
आवेदक को KYC दस्तावेज़, आय‑प्रमाण (सैलरी स्लिप/ITR), संपत्ति के शीर्षक पत्र (Sale Deed, Previous Chain, Tax Receipts, Approved Plan आदि), No Dues और कभी‑कभी Society NOC प्रस्तुत करने होते हैं। बैंक अपनी लीगल व टेक्निकल टीम से सत्यापन कराता है, ऋण की शर्तें तय करता है और Sanction Letter जारी करता है। मॉर्गेज के स्वरूप के अनुसार डीड की रजिस्ट्रेशन/डिपॉज़िट ऑफ़ टाइटल डीड की औपचारिकता पूरी होती है और फिर Disbursement होता है।
कर लाभ (Tax Benefits) कब मिलते हैं?
कर लाभ केवल उन स्थितियों में मिलते हैं जहाँ ऋण आवासीय संपत्ति की खरीद/निर्माण/मरम्मत के लिए लिया गया होम लोन हो। सामान्यतः आयकर अधिनियम की धारा 80C के अंतर्गत मूलधन के पुनर्भुगतान पर निश्चित सीमा तक कटौती उपलब्ध होती है, और धारा 24(b) के अंतर्गत ब्याज पर भी नियत सीमा तक छूट मिल सकती है (स्व-आवoccupied संपत्ति के लिए सीमाएँ अलग होती हैं)। कर लाभ उपयोग-आधारित होते हैं, उत्पाद-आधारित नहीं। यदि कर्ज (चाहे ‘होम लोन’ हो या LAP) घर की खरीद/निर्माण के लिए उपयोग हुआ है, तो धारा 24(b) के तहत ब्याज और 80C के तहत मूलधन-भुगतान की सीमाएँ लागू हो सकती हैं। मरम्मत/नवीनीकरण पर 80C लागू नहीं होता; 24(b) के तहत मरम्मत/नवीनीकरण के ब्याज पर कम सीमा (आमतौर पर ₹30,000/वित्त वर्ष) लागू हो सकती है। वास्तविक पात्रता उपयोग-प्रमाण और वर्तमान नियमों पर निर्भर है। वहीं, यदि LAP का धन व्यवसाय में उपयोग हुआ है, तो उसका ब्याज व्यवसाय-व्यय के रूप में दावा किया जा सकता है—पर आवासीय 80C/24(b) लाभ तब नहीं मिलते। नीति व सीमाएँ समय‑समय पर बदल सकती हैं, इसलिए रिटर्न भरने से पहले नवीनतम नियम और अपने टैक्स‑सलाहकार की राय अवश्य लें।
डिफ़ॉल्ट (चूक) होने पर क्या?
EMI समय पर न चुकाने पर सबसे पहले दंडात्मक ब्याज़ और विलंब‑शुल्क लगते हैं और क्रेडिट स्कोर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लंबे समय तक चूक रहे तो बैंक SARFAESI Act के तहत नोटिस देकर गहाण संपत्ति पर कब्ज़ा/नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। इसलिए ऋण लेते समय यथार्थवादी EMI तय करें, आपातकालीन निधि रखें और आय में बाधा आने पर बैंक से री‑स्ट्रक्चरिंग/मोराटोरियम जैसे विकल्पों पर औपचारिक चर्चा करें।
मॉर्गेज क्लोज़र के बाद क्या‑क्या करवाएँ?
कर्ज पूरी तरह चुकाने के बाद औपचारिक क्लीयरेंस अत्यंत आवश्यक है। बैंक/एनबीएफसी से लिखित NOC (No Objection Certificate) लें; जहाँ रजिस्ट्रेशन हुआ था वहाँ Release Deed दर्ज कराएँ; बैंक से जमा सभी मूल शीर्षक दस्तावेज़ सुरक्षित रूप से वापस लें; रिलीज़/रिकन्वेयंस को रजिस्टर कराएँ और बैंक से NOC लें; इसके बाद भविष्य में निकाले जाने वाले EC में ‘सैटिस्फ़ैक्शन/रिलीज़’ की प्रविष्टि परिलक्षित होगी; ध्यान रहे, EC को ‘हटाया’ नहीं जाता, बल्कि रिलीज़ दर्ज होने से आगे की अवधि के EC में चार्ज ‘क्लियर’ दिखता है; सोसाइटी/नगरपालिका के अभिलेखों में, यदि कोई एन्डोर्समेंट हुआ हो, तो उसे अद्यतन करवाएँ। इन चरणों के बाद ही संपत्ति को बेचना/हस्तांतरित करना सुरक्षित माना जाता है।
आम भूलें और उनसे बचाव
अनधिकृत/अस्पष्ट स्रोतों से ऋण लेना, खाली/सादे कागज़ों पर हस्ताक्षर करना, डीड पढ़े बिना साइन कर देना, EMI में अनियमितता, या रिलीज़ डीड दर्ज किए बिना संपत्ति बेचना—ये सब गंभीर त्रुटियाँ हैं। बेहतर है कि केवल मान्यता प्राप्त बैंक/एनबीएफसी से ही ऋण लें, पूरी शर्तें लिखित में रखें, और हर भुगतान का प्रमाण सुरक्षित रखें।
किस स्थिति में कौन‑सा मॉर्गेज? — एक त्वरित तुलना
नीचे तालिका रूप में मुख्य प्रकारों का संक्षिप्त सार दिया जा रहा है, ताकि पाठक बिना बुलेट‑लिस्ट के भी एक नज़र में अंतर समझ सकें:
प्रकार | मूल विशेषता | स्वामित्व/आय का अधिकार | रजिस्ट्रेशन की स्थिति |
---|---|---|---|
Simple Mortgage | चूक पर बैंक को विक्रय का अधिकार | स्वामित्व उधारकर्ता के पास, पर बैंक विक्रय कर सकता है | आम तौर पर रजिस्ट्रेशन आवश्यक |
Usufructuary Mortgage | बैंक संपत्ति से आय (किराया आदि) लेकर वसूली करता है | आय का अधिकार ऋणदाता को | अनुबंधानुसार |
English Mortgage | अस्थायी स्वामित्व ऋणदाता को; चुकाने पर लौटता है | चुकता तक बैंक के पास | रजिस्ट्रेशन अनिवार्य (TPA §59; ₹100 से अधिक के मॉर्गेज पर रजिस्ट्री आवश्यक—व्यवहार में हमेशा) |
Equitable Mortgage | मूल टाइटल दस्तावेज़ बैंक के पास जमा | स्वामित्व उधारकर्ता का; दस्तावेज़ बैंक के पास | इक्विटेबल मॉर्गेज (टाइटल-डीड डिपॉज़िट) TPA §58(f) के अंतर्गत सामान्यतः डीड रजिस्ट्रेशन के बिना बन सकता है, पर कई राज्यों में ‘मेमोरेंडम/एंट्री’ पर स्टाम्प-ड्यूटी/रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है और यह व्यवस्था प्रायः अधिसूचित नगर/क्षेत्रों में मान्य होती है। स्थानीय स्टाम्प-रूल्स व रजिस्ट्रेशन प्रैक्टिस अवश्य जाँचें। |
टिप: किसी भी रूप में मॉर्गेज लेने से पहले स्थानीय सब‑रजिस्ट्रार/स्टाम्प व रजिस्ट्रेशन नियम, स्टाम्प ड्यूटी, और राज्य‑विशेष प्रक्रियाएँ अवश्य जाँचें।
क्या LAP हर किसी के लिए सही है?
LAP में ऋण राशि अक्सर अधिक और ब्याज दर होम लोन से कुछ ऊँची होती है। चूँकि यह प्रायः एंड‑यूज़‑फ्लेक्सिबल होता है, तो बैंक आय की स्थिरता और संपत्ति की बाज़ार‑क्षमता पर विशेष जोर देता है। यदि व्यापार में नकदी प्रवाह स्पष्ट है और संपत्ति पर किसी प्रकार का विवाद/बांटवारा/अनधिकृत निर्माण नहीं है, तभी LAP पर विचार करें। साथ ही यह भी समझें कि चूक की स्थिति में पारिवारिक/व्यावसायिक संपत्ति जोखिम में पड़ सकती है—अत: उधार केवल उतना ही लें जितना चुकाने का निश्चय और साधन हों।
मॉर्गेज का दायरा: सिर्फ ऋण नहीं, अनुशासन भी
मॉर्गेज केवल धन पाने का माध्यम नहीं; यह वित्तीय अनुशासन की माँग करता है। नियमित EMI भुगतान से क्रेडिट प्रोफाइल सुधरती है, भविष्य में बेहतर दरों पर ऋण मिलने की संभावना बनती है और संपत्ति का उपयोग उत्पादक परिसंपत्ति (Productive Asset) की तरह होता है। विपरीत स्थिति में देर‑सवेर की फ़ीस, दंडात्मक ब्याज, संग्रहण कॉल्स, और अंततः नीलामी जैसी स्थितियाँ व्यक्ति और परिवार—दोनों पर मानसिक व आर्थिक दबाव बढ़ाती हैं।
निष्कर्ष
मॉर्गेज/गहाणखत एक सुदृढ़ वैधानिक संरचना के भीतर संपत्ति को कोलैटरल बनाकर धन जुटाने की प्रक्रिया है। सही दस्तावेज़ीकरण, पारदर्शी शर्तें, यथार्थवादी EMI, और स्पष्ट पुनर्भुगतान‑योजना के साथ यह एक सक्षम वित्तीय साधन बन सकता है। लेकिन गैर‑पंजीकृत/अस्पष्ट लेन‑देन, अविश्वसनीय ऋणदाताओं से दूरी, और कानूनी औपचारिकताओं का पूरा पालन न करना—ये सब गंभीर जोखिम पैदा करते हैं। यदि आप होम लोन ले रहे हैं तो कर लाभों को समझना और यदि LAP/व्यवसायिक ऋण ले रहे हैं तो नकदी प्रवाह व जोखिम‑प्रबंधन की योजना बनाना अत्यंत आवश्यक है।
दायित्व‑अस्वीकरण: उपर्युक्त सामग्री सामान्य सूचना हेतु है। नियम/दरें/कर‑लाभ समय‑समय पर बदलते हैं और राज्यों में प्रक्रियाएँ अलग हो सकती हैं। किसी भी निर्णय से पूर्व मान्यता प्राप्त बैंक/एनबीएफसी, पंजीकृत वकील/चार्टर्ड अकाउंटेंट से अपनी स्थिति के अनुरूप परामर्श अवश्य लें।
Read Also : लीज़ एग्रीमेंट (महाराष्ट्र): पूरी जानकारी और व्यावहारिक मार्गदर्शिका