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आद्य क्रांतिवीर राजे उमाजी नाईक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन वीरों में गिने जाते हैं जिन्होंने अपने साहस, अदम्य इच्छाशक्ति और राष्ट्रभक्ति से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका। उन्हें अक्सर ‘आद्य क्रांतिकारक’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने 1857 के विद्रोह से भी पहले ब्रिटिश शासन के खिलाफ सबसे पहले और सबसे प्रभावशाली विद्रोहों में से एक का नेतृत्व किया था। उनका जीवन, कार्य और बलिदान आज भी लोगों को प्रेरित करता है।
उमाजी नाईक का जन्म 7 सितंबर 1791 को पुणे जिले के भिवाड़ी नामक छोटे से गाँव में हुआ था। वे रमोशी (Ramoshi) समाज से थे, जिसे मराठा काल में गढ़ों और प्रदेश की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया था। यह समाज रात में गश्त और पहरेदारी करता था और इसके बदले कुछ गाँवों से कर वसूलने का अधिकार प्राप्त था। लेकिन जब मराठा साम्राज्य अंग्रेजों के सामने पराजित हुआ तो यह अधिकार छीन लिया गया। इसी अन्याय ने रमोशी समाज को अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ विद्रोह के लिए प्रेरित किया। उमाजी नाईक के भाई का नाम कृष्णाजी नाईक था।
मराठा महासंघ के पतन के तुरंत बाद, उमाजी नाईक ने अंग्रेजों के विरुद्ध एक छोटी सेना का गठन किया। उन्होंने 1826 में स्वयं को राजा घोषित किया और एक घोषणापत्र जारी कर देशवासियों से विदेशी सत्ता के खिलाफ उठ खड़े होने का आह्वान किया। उनका संदेश स्पष्ट था—अंग्रेजी सेना और घुड़सवारों का सफाया करो और उनकी संपत्ति लूटकर गरीबों में बाँटो। वे सतारा, कुरुड, मंडदेवी कालबाई पर्वत, खोपोली-खंडाला और बोरघाट के पर्वतीय क्षेत्रों में रहते और वहीं से गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाकर अंग्रेजों पर हमला करते। उन्होंने अपना एक मुहर (stamp) भी जारी किया, जिस पर लिखा था – “उमाजी राजे नाईक, मुक्काम डोंगर” अर्थात् “वीर उमाजी, पर्वतों में रहते हैं।”
उमाजी नाईक ने अंग्रेजी पुलिस मुख्यालयों और उनके समर्थकों पर कई आक्रमण किए। उन्होंने जेजुरी की पुलिस चौकी पर हमला कर अंग्रेजी पुलिसकर्मियों को मार डाला। रमोशी समुदाय ने उन लोगों को दंडित किया जो अंग्रेजों के वफादार थे। उमाजी नाईक अंग्रेज सरकार और साहूकारों से धन लूटकर आम जनता में बाँटते थे। इसी कारण वे लोकनायक और रॉबिनहुड कहलाए।
1828 में अंग्रेजों ने नाईक से समझौता किया। उन्हें 120 बीघा जमीन दी गई और रमोशी समाज के लोगों को सरकारी नौकरी देने का आश्वासन भी दिया गया। कुछ समय तक इस समझौते से शांति रही, लेकिन जल्द ही अंग्रेज अपने वादे से पीछे हट गए और नाईक ने पुनः विद्रोह का मार्ग अपनाया। 1831 में उन्होंने अपने संगठन का विस्तार किया और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध व्यापक घोषणा की।
अंग्रेज सरकार ने उमाजी नाईक को पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा की। उनके सिर पर 10,000 रुपये का इनाम रखा गया। अंग्रेज अफ़सर मेकिंटोश (Makcintosh) और अन्य अधिकारियों जैसे कैप्टन वाइड, लिविंग्स्टन और लुकान ने उन्हें पकड़ने की योजना बनाई। अंततः विश्वासघात के कारण वे गिरफ्तार हुए। कुछ ऐतिहासिक अभिलेख बताते हैं कि उनकी बहन जीजाई को चार गाँवों का स्वामित्व देकर रिश्वत दी गई और उन्होंने पकड़वाने में भूमिका निभाई। वहीं एक अन्य विवरण के अनुसार, नाना रघु चव्हाण नामक एक रमोशी ने अंग्रेजों को धोखा देकर उन्हें पकड़वाया और इनाम प्राप्त किया।
गिरफ्तारी के बाद उन्हें पुणे की जेल में रखा गया। वहीं “अंधार कोठी” नामक अंधेरे कक्ष में कैप्टन मेकिंटोश द्वारा उनकी पूछताछ की गई। इसके बाद कोर्ट में उन पर मुकदमा चला और उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई। 3 फरवरी 1832 को पुणे में तहसील कार्यालय परिसर में उन्हें फाँसी दी गई। वहीं उनकी समाधि आज भी मौजूद है।
उमाजी नाईक का जीवन एक अद्वितीय उदाहरण है कि किस तरह एक साधारण किसान और रमोशी समाज का व्यक्ति भी असाधारण साहस और दृढ़ता के बल पर इतिहास रच सकता है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि स्वतंत्रता केवल राजा-महाराजाओं या बड़े नेताओं की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि आम आदमी भी इसके लिए अपनी जान न्यौछावर कर सकता है।
आज भी महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में उमाजी नाईक की गाथाएँ लोकगीतों और कथाओं के रूप में गाई जाती हैं। उन्हें एक लोकनायक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने गरीबों के हक के लिए और विदेशी सत्ता के अन्याय के खिलाफ अपनी जान दे दी। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि अन्याय और शोषण के खिलाफ हमेशा खड़ा होना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।
राजे उमाजी नाईक का योगदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की उस पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है जहाँ अनेक छोटे-बड़े विद्रोह और आंदोलनों ने मिलकर अंग्रेजी सत्ता की नींव हिला दी थी। वे उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं जिन्होंने अपने संघर्ष से आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा दी।
सच्चे अर्थों में उमाजी नाईक एक सामाजिक क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी और लोकनायक थे। उनका नाम हमेशा इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा और भारतवासी सदैव उनके बलिदान को नमन करते रहेंगे।
Read in English : Adya Krantikarak Raje Umaji Naik